* * * पटना के पैरा-मेडिकल संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च जयपुर कें निम्स यूनिवर्सिटी द्वारा अधिकृत कएल गेल। *

Saturday, 16 January 2010

डिग्री आ व्यक्तित्व विकास

पछिला बरख 1 सितम्बर,2009 कए दैनिक भास्कर में प्रकाशित भेल एहि लेख में उठाओल गेल मुद्दा सार्वकालिक महत्वक अछिः-
इक्कीसवीं सदी के वैश्वीकरण के इस भौतिकवादी युग में जब भारतीय समाज को बाजार में बदला जा रहा है, ऐसे संक्रमणकाल में पैसा केंद्रित समाज व्यवस्था में गुरु के स्थान पर शिक्षक शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है। गुरु और शिक्षक शब्दों में काफी अंतर है। व्यावसायिक शिक्षा व्यवस्था में वेतनभोगी शिक्षक एवं शुल्क देने वाले आधुनिक शिक्षार्थी के एक नए संबंधों को स्थापित किया है। समाज, शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षार्थी सभी ने प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा को तिलांजलि देकर आधुनिक स्वार्थमूलक आर्थिक संबंधों पर आधारित एक नए पर्यावरण को जन्म दिया है,जिसमें शिक्षक का संबोधन भी शिक्षाकर्मी तक की यात्रा पूर्ण कर चुका है।

आधुनिक संचार क्रांति ने सूचनाओं का विस्फोट कर दिया है। शिक्षा प्राप्त करने के इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया ने शिक्षक के महत्व को प्रभावित किया है। इसका कारण यह भी है कि इसमें प्रमाणित अत्याधुनिक एवं इच्छित उपयोगी रेडीमेड सूचना सामग्री कम्प्यूटर के माध्यम से मिल जाती है। कई बार इसकी जानकारी स्वयं शिक्षकों को भी नहीं होती है। ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया निरंतर प्रवाहमान है जबकि हमारी शिक्षा व्यवस्था में अकसर वर्षो पूर्व डिग्री के आधार पर चयनित शिक्षक बन जाने के बाद वह वर्तमान ज्ञान से कट जाता है और विषय में अत्याधुनिक परिवर्तनों के प्रति उसकी असजगता शिक्षार्थियों पर वह प्रभाव पैदा नहीं कर पाती है, जिसकी आवश्यकता है। आज वही शिक्षक शिक्षार्थी को प्रभावित करने में सफल हो पाता है,जो अपने ज्ञान को समय-समय पर अपग्रेड करता रहता है। इसलिए कम्प्यूटर क्रांति ने शिक्षकों की सूचनादाता की इस उपादेयता को प्रभावित किया है।वर्तमान शिक्षा प्रणाली डिग्रियों पर आधारित है।

डिग्रियों का संबंध आंतरिक एवं ब्राह्य व्यक्तित्व विकास से न होकर सूचना एवं तकनीक आधारित हो गया है। डिग्रियां अकसर ज्ञान प्रदाता न होकर रोजगारोन्मुख हो गई हैं इसलिए कोचिंग, ट्यूशन एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण स्थलों ने शिक्षार्थियों को बहुत तेजी से अपनी ओर आकृष्ट करने में सफलता प्राप्त कर ली है। इसलिए प्रशिक्षक एवं प्रशिक्षु का एक व्यावसायिक संबंध बन गया है। इस संबंध में शिक्षक सम्मान न होकर मित्रता या मार्गदर्शक का भाव प्रबल हो गया है। शिक्षार्थी यह अच्छे से जानता है कि वह इच्छित पैसा देकर प्रतियोगी परीक्षा और अन्य परिक्षाओं में सफल होने की तकनीक सीख रहा है। वर्तमान तकनीकी शिक्षा पद्धति डिग्री लेकर पैकेज आधारित बहुराष्ट्रीयकंपनियों में देश व विदेश में जाकर धन कमाने पर आधारित हो गई है। शिक्षालयों की व्यावसायिकता में उनके प्रति आत्मीयता की सुगंध को कम कर दिया है व इन संस्थानों को शिक्षार्थी अगली यात्रा में जाने का पड़ाव स्थल मानता है।

समाज एक मौन तटस्थ भाव से शिक्षा के इस परिवर्तित मूल्यों को देख रहा है। अभिभावकगण शिक्षालयों में मोटी फीस चुकाकर पे-रेंट की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। गिने-चुने अभिभावक हैं जो वर्षभर में शिक्षालयों और कोचिंग सेंटरों में जाकर यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि वहां उनकी लाड़ली संतान किस तरह की शिक्षा प्राप्त कर रही है? समाज निर्माण के इन शिक्षा केंद्रों की तरफ सुनियोजित चिंतनपूर्ण नीतियों का अभी भी अभाव है। शिक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अब तक जितने प्रयोगधर्मी कदम उठाए गए उतने किसी क्षेत्र में शायद नहीं उठाए गए हो, क्योंकि शिक्षा में कोई भी परिवर्तन कई वर्षो बाद जाकर परिणाम देता है। तब पता चलता है कि प्रयोग सफल रहा अथवा नहीं। तब तक प्रयोगधर्मी सरकार बदल जाती है। शिक्षक की नौकरी प्रयोगधर्मिता का पर्याय बन गई है।

समाज में शिक्षक दिवस एक औपचारिक वंदना दिवस मात्र बनकर रह गया है जबकि इस दिवस यह चिंतन-मनन जरूर किया जाना चाहिए कि हमारे देश में कैसी शिक्षा पद्धति, कैसा शिक्षार्थी, कैसा शिक्षक, कैसा शिक्षालय एवं कैसा समाज होना चाहिए, जिनके आपसी तालमेल से एक ऐसे मनुष्य का निर्माण हो सके जो भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करता हुआ विश्व समाज को प्रभावित कर सके , क्योंकि शिक्षा सदैव से एक आंतरिक, कभी न समाप्त होने वाला अभियान है। अपनी अंतर्निहित क्षमताओं का अपने चतुर्दिक परिवेश में रहकर श्रेष्ठतम का विकास करना है। शिक्षा और शिक्षक से कमोबेश यह आशा की जाती है वह अतीत, वर्तमान व भविष्य के बीच अंतराल को दूर करेगा, साथ ही इनका चरम लक्ष्य है कि मानव व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास किया जाए। वर्तमान समय में शिक्षा, शिक्षक, शिक्षार्थी और समाज के मूल्यों में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं।

भारत की वर्तमान स्थितियों में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र एवं अन्य आधारों पर समाज को नहीं बांटें, बल्कि समाज की राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने में सहायक बने, जो मनुष्य को आंतरिक एवं ब्राह्य दोनों रूपों में राष्ट्र का सच्च नागरिक बनाए।

इसलिए हमें ऐसी शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की आवश्यकता है जो मानव तथा राष्ट्र दोनों का निर्माण करने की आवश्यकता को सही अर्थो में पूर्ण कर सके। शिक्षक दिवस हमारे आत्मचिंतन का दिवस है और शिक्षकों के सम्मान का यह भाव पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के इस कथन से प्रतिबिंबित होता है कि उन्हें जब मीडिया द्वारा पूर्व राष्ट्रपति से संबोधित किया गया, तब उन्होंने कहा कि मुझे प्रो. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कहिए।

हमारी शिक्षा, शिक्षा प्रणाली, शिक्षालय और शिक्षक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करे जो अंधेरे से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर तथा मृत्यु से अमृत की ओर जाने का मार्ग बताए। शिक्षक का सम्मान उसके कर्मो से स्वयंमेव उपजे न कि शिक्षक सम्मान औपचारिकता का पर्याय रह जाए। शिक्षकों का सम्मान राष्ट्र के प्रहरियों का सम्मान है।

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