नौ विवि के 250 अंगीभूत कालेजों में शिक्षकों एवं छात्रों के अनुपात की जांच की योजना पिछले दो वर्षों से लटकी हुई। इस वजह से बगैर अध्यापन के पगार लेने वाले गुरुजी की मौज है। जांच नहीं होने से शिक्षकों को दूसरे कालेजों में तबादला नहीं किया जा रहा है। बता दें कि तत्कालीन राज्यपाल आर. एस. गवई ने विवि एवं कालेजों में शैक्षिक सुधार करने की मुहिम छेड़ दी थी। उन्होंने विवि से संबंधित कार्याें की देखरेख को एक ओएसडी नियुक्त किया था। ओएसडी डा. कृष्ण कुमार ने कालेजों का ताबड़तोड़ निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंेने पटना समेत अन्य विवि के कालेजों एवं विभागों में व्याप्त अराजकता पाया था। कुछ कालेजों के कई- कई विभागों में नामांकन की बोहनी तक नहीं हुई जबकि कई विभागों में छात्रों की संख्या कम थी। कई विषयों में स्वीकृत पद से शिक्षकों की संख्या तो कम थी मगर छात्रों के हिसाब से कई गुना अधिक थी। इसके बाद राजभवन ने विवि से अपने सभी कालेजों में विषयवार शिक्षकों की संख्या तथा अध्ययनरत छात्रों की संख्या तलब किया। उन्होंने विवि के कुलपति या अन्य दूसरे पदाधिकारी की कमेटी गठित करने के निर्देश दिये। जिसे कालेजों तथा विभागों में छात्रों एवं शिक्षकों के अनुपात की जांच करने को कहा गया। बताया जाता है कि विवि से जानकारी मिलने के बाद राजभवन कालेजों में छात्र व शिक्षक अनुपात की समीक्षा का फैसला किया है। राज्यपाल का यह कदम शिक्षकों को रास नहीं आया और दबी जुबान से विरोध करने लगे। मगर राज्यपाल के सख्त तेवर को देख कर कोई भी खुल कर सामने नहीं आया। इसी बीच डा. आरएस गवई राज्यपाल पद से हटा दिये गये। उनके जाते ही शिक्षकों और छात्रों के अनुपात की जांच का मामला लटक गया।
,दैनिक जागरण,26मार्च,2009
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